पतंग की डोर : परिवार दिवस पर एक कहानी

पतंग की डोर /Patang ki dor । A Hindi Story on International Family Day

हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यह दिवस घोषित किया गया था।  इस अवसर पर एक प्रेरणादायक कहानी आपके साथ शेयर कर  रही हू‌ं।

पतंग की डोर 

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image credit : google

एक बार एक गांव मेंं पतंग उड़ाने केे त्योहार  का आयोजन हुआ। गांव का एक आठ साल का बच्चा दीपू भी अपने पिता के साथ इस  त्योहार में गया। दीपू  रंगीन  पतंगों  से भरा आकाश देखकर बहुत खुश हो गया। उसने अपने पिता से उसे एक पतंग और एक मांझा ( धागे का रोल)  दिलाने  के लिए कहा ताकि वह भी  पतंग उड़ सके। दीपू के पिता दुकान में गए और उन्होनें  पतंग और धागे का एक रोल  खरीद्कर अपने बेटे  को दे दिया।

अब दीपू ने  पतंग उड़ाना शुरू कर दिया। जल्द ही, उसकी पतंग आकाश में ऊंचा उड़ने लगी । थोड़ी देर के बाद, उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, ऐसा लगता है कि धागा पतंग को उंचा उड़ने से रोक रहा है, अगर हम इसे तोड़ते हैं, तो  पतंग इससे भी और ज्यादा उंची उड़गी। क्या हम इसे तोड़ सकते हैं? “तो, पिता ने रोलर से धागा   काटकर अलग कर  दिया। पतंग थोड़ा ऊंचा जाना शुरू हो गयी ।  यह देखकर दीपू बहुत खुश हुआ।

लेकिन फिर, धीरे-धीरे पतंग ने नीचे आना शुरू कर दिया। और, जल्द ही  पतंग एक अज्ञात इमारत की छत पर गिर गयी । दीपू को यह देखकर आश्चर्य हुआ। उसने धागे को काटकर  पतंग को मुक्त कर दिया था ताकि वह ऊंची उड़ान भर सके, लेकिन इसके बजाय, यह गिर पड़ी। उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, मैंने सोचा था कि धागे को काटने के बाद, पतंग खुलकर उंचा  उड़ सकती है । लेकिन यह क्यों गिर गयी ? “

पिता ने समझाया, “बेटा, जब हम जीवन की ऊंचाई पर रहते हैं, तब अक्सर सोचते हैं कि कुछ चीजें जिनके साथ हम बंधे हैं और वे हमें आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। धागा पतंग को ऊंचा उड़ने से नहीं रोक रहा था, बल्कि  जब हवा धीमी  हो रही थी उस वक़्त धागा पतंग को  ऊंचा रहने में मदद कर रहा था, और जब हवा तेज  हो गयी तब तुमने धागे की मदद से ही पतंग को उचित दिशा में ऊपर जाने में मदद की। और जब हमने  धागे को काटकर छोड़ दिया , तो धागे के माध्यम से पतंग को जो सहारा मिल रहा था वह खत्म हो गया और पतंग टूट कर गिर गयी “। दीपू को बात समझ में आ गयी और उसे अपनी गलती का एह्सास हो गया।

कहानी की सीख :  कभी-कभी हम महसूस करते हैं कि यदि हम अपने परिवार, घर से बंधे नहीं हो तो  हम जल्दी से प्रगति कर सकते हैं और हमारे जीवन में नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं  लेकिन, हम यह महसूस नही करते कि  हमारा  परिवार, हमारे प्रियजन ही हमें  जीवन के  कठिन समय से उबरने  में मदद करते हैं और हमें अपने जीवन में    आगे बढने  के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे हमारे लिये रुकावट नही है, बल्कि  हमारा सहारा है।

 अर्चना त्रिपाठी

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